चैतन्य शर्मा

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मैं चैतन्य, 16 साल का हूँ | मुझे कार्टून बनाना और कोडिंग करना बहुत पसंद है | मैं क्लास XI में पढ़ता हूँ | यह ब्लॉग 15 साल पहले मेरी माँ डॉ. मोनिका शर्मा ने बनाया था । अब मैं खुद अपने पोस्ट मेरे इस ब्लॉग पर शेयर करता हूँ ।

Sunday, March 13, 2011

हे प्रकृति माँ रूठो ना.......!


मत रूठो  हे  धरती   माता 
तुम  तो हो  जीवन की दाता

तेरा आँचल सब कुछ देता 
हमसे  नहीं कभी कुछ लेता  

 तेरी गोदी  घर हम सबका
इसमें जोड़ें तिनका तिनका  

तुमसे ही यह सृष्टि रची है
फिर क्यूँ उथलपुथल मची है.

क्षमा करो  माँ .... यूँ कहर बन टूटो ना ...
हे प्रकृति माँ रूठो ना..... हे प्रकृति माँ रूठो ना....


यह पंक्तियाँ मेरी ममा ने लिखी हैं.................. भूकंप का दर्द झेल रहे जापानवासियों के साथ हैं हम सबकी हार्दिक संवेदनाएं.......... :(

31 comments:

केवल राम said...

तेरा आँचल सब कुछ देता
हमसे नहीं कभी कुछ लेता

अरे वाह ..मेरे गुरु, आपने तो कविता के माध्यम से बहुत सुंदर सन्देश संप्रेषित किया है ...इस रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई

केवल राम said...

प्रकृति को संबोधित कर लिखी गयी कविता हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है , आपका शुक्रिया

Chaitanyaa Sharma said...

थैंक यू केवल भैया ..... यह कविता मेरी ममा ने लिखी है ...... उनकी तरफ से भी धन्यवाद ....

जयकृष्ण राय तुषार said...

मेरे प्रिय दोस्त आपकी माँ एक सहृदय महिला हैं उनके विचार बहुत उच्च है तो कविता को सुंदर होना ही था |आपको आपके माँ पिता और आपके प्यारे दोस्तों को भी होली की अग्रिम शुभकामनाएं |

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ, प्रकृति तो संकेतों से ही कहती है।

रानीविशाल said...

बहुत ही सुन्दर रचना ...

Patali-The-Village said...

प्रकृति को संबोधित कर लिखी गयी बहुत सुन्दर पंक्तियाँ| धन्यवाद|

प्रतुल वशिष्ठ said...

अपने बड़ों कि प्रति इस तरह के भाव [कविता में निहित भाव] ... यदि प्रकृति से छेडछाड करने वालों के भी हो जाएँ तो जरूर प्रकृति माँ कभी न रूठेगी ... मेरा ऐसा विश्वास है.
आज़ समर्थ/ विकसित देश सादगी से जीवन जीने के हिमायती नहीं रह गये हैं. ...... प्रकृति का दोहन इतनी तेज़ी से हो रहा है कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते.
जबरन द्वीप बना कर मेगा कंस्ट्रक्शन करना ....... बहुमंजलीय इमारतें, बर्फीले प्रदेशों में गुपचुप परमाणु परीक्षण करके ताकतवर बनने की होड़... प्रकृति से छेड़छाड़ ही नहीं उससे बलात्कार है.

— जहाँ झोपड़ के बनिस्पत अपार्टमेन्ट को तरजीह मिले.
— जहाँ मुँह अँधेरे खेत फिरने के बनिस्पत कमोड बारम्बारिता अपने सुभीते से हो.
— जहाँ शारीरिक श्रम के बनिस्पत 'जीवन की निर्भरता' यांत्रिक सुख सुविधा पर मोहित हो.
— जहाँ प्राकृतिक जीवन के बनिस्पत औपकरणिक जीवन शैली को पसंद किया जाये.
— जहाँ किसी जीव की प्रकृति प्रदत्त जीवन आयु को मनुष्य अपने मुख के स्वाद के लिये घटा दे.
..... वहाँ क्योंकर प्रकृति ना रूठे? ...... स्वभाविक है उसका रूठना.
मेरी इतनी ही समझ है ..... बाक़ी चैतन्य अपनी बढ़ती आयु के साथ जरूर सोचेगा.

Sawai Singh Rajpurohit said...

बहुत अच्छे आभार आपका...

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही प्यारी पंक्तियाँ.

abhi said...

:(

vijai Rajbali Mathur said...

कविता में बहुत अच्छी भावना व्यक्त की है.यह धरती माँ नहीं रूठी है उस पर इस धरती वासियों के अत्याचारों का परिणाम है यह.
जापान वासियों के दुःख में हम सभी उनके साथ है और शीघ्र समाधान की कामना करते हैं.

Thendral said...

Nice wordings. My prayers to all the people who are suffering.
http://thendralscraft.blogspot.com

Kailash Sharma said...

तुमसे ही यह सृष्टि रची है
फिर क्यूँ उथलपुथल मची है.

बहुत सुन्दर और सार्थक..जापान वासियों के साथ हमारी संवेदना है..

सुज्ञ said...

चैतन्य,

ममा नें सबकी ममा से यह प्रार्थना की है।
आपकी ममा तो जल्दी मान जाती हैं क्योंकि वह तो आपकी मात्र अटखेलियाँ होती है।
पर वह सबकी ममा कैसे माने?,हमारी तो दुष्ट शैतानियां होती है।

प्रतुल जी नें सब कुछ कहा ही है…। पीडितों के प्रति हमारी संवेदनाएँ…

G.N.SHAW said...

चैतन्य इस धरती माँ की गुस्सा तेज होती है ! इस माँ के अंचल को हमें सुरक्षित रखना चाहिए !आप को और आप के माँ को भी धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

चैतन्य जब बच्चे नालायक हो जाये तो मां को गुस्सा तो आयेगा ना....

Unknown said...

चैतन्य बहुत ही सुन्दर पंक्तियां है.. मै तुम्हारी भावनावों को समझता हूँ.... धरती माता हमरी गलतियों की सजा दे रही हैं हमें अब तो सबक लेना चाहिए अपनी गलतियों से,,, प्रकृति की हिफाजत को अपना पहला कर्त्तव्य बनाना होगा,,

मदन शर्मा said...

मास्टर चैतन्य जी .....
यह कविता आपकी ममा ने लिखी है! अति सुन्दर!!
किन्तु आपने क्यों नहीं लिखी ?
आपके चित्र कहाँ छुट गए. अगली बार ध्यान रखियेगा
आपको आपके माता पिता और आपके प्यारे दोस्तों को होली की अग्रिम शुभकामनाएं

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@प्रतुल जी आपकी हर बात से सहमत हूँ..... सच में विकास के नाम पर यह कैसा दोहन है.... धरती माँ की नाराज़गी हमारे ही क्रियाकलापों का परिणाम है..... विचारणीय बातें ....

Mahesh Barmate "Maahi" said...

nice poem Monika ji...

Coral said...

bahut acchi poem Monika ji......

Suman said...

nanhe dost,
mai apke sath hun is prarthna me.......

Creative Manch said...

क्षमा करो माँ .... यूँ कहर बन टूटो ना ...
हे प्रकृति माँ रूठो ना.....

आहा कितनी सुन्दर प्रार्थना
आजकल टीवी पर जापान के द्रश्य देखकर मन अत्यंत विचलित हो उठता है .... आपकी इस प्रार्थना में हम भी शामिल हैं

संध्या शर्मा said...

आप भी अपनी ममा की तरह आप भी बहुत अच्छे हो, और हाँ बहुत प्यारे भी..
माँ अपने बच्चों की बात जरूर सुनती हैं, और यदि उसमे आपके जैसे नन्हे मुन्ने की भी फरियाद हो तो वो जल्दी मान भी जाती है.. मोनिका जी इतने सुन्दर शब्दों के लिए धन्यवाद...

Manoj Kumar said...

oh..!! very- very nice...!

संजय भास्‍कर said...

कविता में बहुत अच्छी भावना व्यक्त की है.

संजय भास्‍कर said...

मोनिका जी इतने सुन्दर शब्दों के लिए धन्यवाद...

संजय भास्‍कर said...

कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका

गौरव शर्मा "भारतीय" said...

चैतन्य जी बेहतरीन कविता के लिए बधाई स्वीकार करें....

Rajendra Rathore said...

चैतन्य जी. कविता में बहुत अच्छी भावना व्यक्त की है.

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