ये दो प्यारे गीत आदरणीय रमेश तैलंग अंकल ने अपने ब्लॉग नानी की चिठ्ठियाँ पर लगाये थे | उनके इन सुंदर बालगीतों के लिए उन्हें मेरा ढेर सारा प्यार और हार्दिक धन्यवाद | उनके रचे ये गीत मेरी माँ को भी बहुत अच्छे लगे |
घर में अकेली माँ ही बस
सबसे बड़ी पाठशाला है.
जिसने जगत को पहले पहल
ज्ञान का दिया उजाला है.
माँ से हमने जीना सीखा
माँ में हमको ईश्वर देखा
हम तो हैं माला के मनके
माँ मनकों की माला है.
माँ आँखों का मीठा सपना
माँ साँसों में बहता झरना
माँ है एक बरगद की छाया
जिसने हमको पाला है.
माँ कितनी तकलीफें झेले
बांटे सुख सबके दुःख ले ले
दया-धर्म सब रूप हैं माँ के,
और हर रूप निराला है.
ज्ञान का दिया उजाला है.
माँ से हमने जीना सीखा
माँ में हमको ईश्वर देखा
हम तो हैं माला के मनके
माँ मनकों की माला है.
माँ आँखों का मीठा सपना
माँ साँसों में बहता झरना
माँ है एक बरगद की छाया
जिसने हमको पाला है.
माँ कितनी तकलीफें झेले
बांटे सुख सबके दुःख ले ले
दया-धर्म सब रूप हैं माँ के,
और हर रूप निराला है.
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अम्मां को क्या सूझी
मुझको कच्ची नींद सुलाकर
बैठ गई हैं धूप सेंकने
ऊपर छत पर जाकर
जाग गया हूँ मैं अब कैसे
खबर उन्हें पहुँचाऊँ?
अम्मां!अम्मां! कहकर उनको
कितनी बार बुलाऊँ?
पाँव अभी हैं छोटे मेरे
डगमग डगमग करते,
गिरने लगता हूँ मैं नीचे
थोडा-सा ही चलते.
कैसे चढ पाऊंगा मैं अब
इतना ऊंचा जीना?
सोच-सोच कर मुझे अभी से
है आ रहा पसीना.
बैठ गई हैं धूप सेंकने
ऊपर छत पर जाकर
जाग गया हूँ मैं अब कैसे
खबर उन्हें पहुँचाऊँ?
अम्मां!अम्मां! कहकर उनको
कितनी बार बुलाऊँ?
पाँव अभी हैं छोटे मेरे
डगमग डगमग करते,
गिरने लगता हूँ मैं नीचे
थोडा-सा ही चलते.
कैसे चढ पाऊंगा मैं अब
इतना ऊंचा जीना?
सोच-सोच कर मुझे अभी से
है आ रहा पसीना.